सोमवार, 22 जुलाई 2013

अब्राहम लिंकन का पत्र

गुरु पूर्णिमा के अवसर,,,,,,
पर एक पत्र जो अब्राहम लिंकन ने अपने पुत्र के अध्यापक को लिखा था ,उसे आप सबो के बिच साझा कर रहा हु..
प्रिये अध्यापक महोदय
मेरा पुत्र आपके पास शीछा ग्रहण कर रहा है आपसे नम्र नवेदन है आप उसे चरित्रवान नागरिक बनाये | यह भी समझाएं सभी मनुष्य न्यायप्रिये या सच्चे नहीं होते ,आप यह भी समझाएं दुष्टो का प्रतिरोध करने के लिए बहादुर लोग भी होते है ,यदि स्वार्थी राजनीतिक होते है तो अच्छे लोग भी यहाँ है ,उसे यह बोध कराये यदि शत्रु होते है तो मित्र भी होते है, मै जनता हु की यह समय साध्य है किन्तु आप उसे समझाएं कमाया हुआ एक रूपया पाए गए पांच रुपये की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है ,आप उसे खेल भावना में हारना सिखाएं और बिजयी होने का आनंद भी लेना सिखाये | उसे इर्ष्या से दूर ले जाये ,यदि हो सके तो मूक हास्य का रस भी सिखाये | उसमे यह समझ पैदा करे की प्रतारित करने वालो का मुकाबला करना सबसे आसान होता है ,उसे पुस्तकों को चमत्कार समझाए | आप उसे सांत चित होकर आकास में पंछियों, धुप में मधुमक्खीयो ,और हरे पर्वत पर रंग बिरंगे पुष्पों के सास्वत रहस्य पर मनन करने की भी शिछा दे |बिध्यालय में उसे समझाए धोखा देने की तुलना में असफल होना अधिक सम्मानजनक है ,उसे अपने बिचारो पर बिस्वास रखने की सिख दे ,चाहे दुसरे उसके बिचारो को गलत ही क्यों ना कहे |उसे सज्जनों से बिनम्र और उदंड व्यक्तियो के साथ कठोर वयवहार करना सिखाये ,मेरे पुत्र में ऐसी दृढ़ता विकसित करे की वह उस समूह का अनुसरण ना करे जिसमे सब लोग हा में हा मिलाने की होर कर रहे हो| उसे सबकी बाते सुनने की शिक्षा दे, परन्तु उसे यह भी शिखाये जो कुछ वह सुनता है उसे सत्य की कसोटी पर कसकर देखे और जो कुछ अच्छा लगे उसे ग्रहण करे | यदि हो सके तो उसे यह सिखाये दुःख के छनो में मुस्कुराया कैसे जाता है ,समझाए की आँखों में करुना ,प्रेम ,सम्बेदना के आंसू भरना लज्जा की बात नहीं | उसे ऐसे लोगो की उपेक्छा करना सिखाये जिन पर बिस्वास नहीं किया जा सकता है ,उसे अत्यधिक मधुर बोलने वालो किन्तु मन में कपट रखने वालो से सावधान रहना भी सिखाये | उसे यह शिक्षा दे की अपना मस्तिक्स तो सबसे ऊँचे दाम देने वाले के हवाले करे लेकिन आत्मा और बिस्वासो के दाम ना लगने दे ,उसे चिल्लाने वाली भीर की और से कान बंद रखना सिखाये.....
             आप उसके साथ सौम्य बव्हार तो करे किन्तु आवश्यकतानुसार कठोरता भी बरते क्युकी अग्निपरीक्षा से ही उत्तम फोलाद निर्मित होता है ,उसे मानव जाती पर परमबिस्वास रखने की शिक्षा दे ,,,,,
        मै आपसे बहुत अपेक्षाकर रहा हु आप बिचार करे की मेरे बेटे के लिए आप क्या – क्या कर सकते है |

                                           एक अभिभावक [अब्राहम लिंकन ]

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

हमारा कानून -1

1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया ये जो कलेक्टर  हैं वो इसी कानून की देन हैं |  इनका काम था Revenue, Tax, लगान और लुट के माल को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये | अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया , भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है, क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था, ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है, और वो कानून चुकी आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं | अभी आपने CVC थोमस का मामला देखा होगा | इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता | और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा | और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है | और जो Commissioner होते थे वो commission पर काम करते थे उनकी कोई तनख्वाह तय नहीं होती थी और वो जो लुटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था | ये मजाक की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये सच्चाई है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय | अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 64 सालों में बस इतना ही बदलाव हुआ है |
 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में | इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे और गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वो ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर तरह का उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल कर के वो खाना बनाते थे अंग्रेजों ने इस कानून को लागू कर के जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया | साधारण आदमी अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और अगर काटे तो वो अपराध है और उसे जेल हो जाएगी, अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता , लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता | अंग्रेजों द्वारा नियुक्त ठेकेदार जब चाहे, जितनी चाहे लकड़ी काट सकते हैं | हमारे देश में एक कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है Indian Tobacco Company  ये कंपनी हर साल 200 अरब सिगरेट बनाती है,कागज़ और गत्ते भी बनाती है और इसके लिए 14 करोड़ पेड़ हर साल काटती है | इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी ज्यादा ख़राब स्थिति अब हो गयी है, आप अपने जमीन पर के पेड़ भी नहीं काट सकते |तो कानून ऐसे बने हुए हैं कि साधारण आदमी को आप जितनी प्रताड़ना दे सकते हैं, दुःख दे सकते है, दे दो विशेष आदमी को आप छू भीं नहीं सकते | और जंगलों की कटाई से घाटा ये हुआ कि मिटटी बह-बह के नदियों में आ गयी और नदियों की गहराई को इसने कम कर दिया और बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया |

हमारा कानून -2

मोटर वेहिकल  एक्ट भी अंग्रेजो का बनाया एक कानून है जो लगभग उसी स्वरूप में आज भी जारी है ,उस ज़माने में कार/मोटर जो था वो सिर्फ अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता था तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि अगर किसी को मोटर से धक्का लगे या धक्के से मौत हो जाये तो सजा नहीं होनी चाहिए या हो भी तो कम से कम | साल डेढ़ साल की सजा हो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए उसको हत्या नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि हत्या में तो धारा 302 लग जाएगी और वहां हो जाएगी फाँसी या आजीवन कारावास, तो अंग्रेजों ने इस एक्ट में ये प्रावधान रखा कि अगर कोई मोटर के नीचे दब के मरा तो उसे कठोर और लम्बी सजा ना मिले | ये व्यवस्था आज भी जारी है और इसीलिए मोटर के धक्के से होने वाली मौत में किसी को सजा नहीं होती | और सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर साल डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से या उसके नीचे आ के मरते हैं लेकिन आज तक किसी को फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हुआ |उसी तरह से एक और कानून है Indian Citizenship Act , आप और हम भारत के नागरिक हैं तो कैसे हैं, उसके Terms और Condition अंग्रेज तय कर के गए हैं | अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें | तो इसलिए कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति (पुरुष या महिला) एक खास अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी) | लेकिन हमने इसमें आज 2011 तक के 64 सालों में रत्ती भर का भी संशोधन नहीं किया | इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है | ये भारत की आजादी का माखौल नहीं तो और क्या है ? | आप अमेरिका जायेंगे और रहना शुरू करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा लेकिन आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा | ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है | दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देश को छोड़ के हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है | कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है, Indian Citizenship Act , उसमे ये व्यवस्था है|

गुनाहगार को सजा मिले

22 बच्चो की मोत हो गई है भगवन ना करे ये संख्या बढे ,मधुबनी के बच्चों का भाग्य अच्छा था बच गए ,गया में बिटामिन की गोली खाने से भी मोत हुई ,एक के बाद एक घटनाये हो रही है कार्येवाई के नाम पर राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप ,भीख में मुवाब्जा ,क्या इससे गुनाहगार को सजा मिल जाएगी ,पिरितो का दर्द ख़तम हो जायेगा ,मुवाबजे की रकम क्या पिरितो को दिया रिश्वत नहीं है ,गुनाहगारो के पाप को ढकने के लिए |ये पैसा सरकार में बठे लोगो के बाप की कमाई है, ये जनता का पैसा है मुअब्ज़े की रकम और जयादा होना चाहिए ,वसूलना चाहिय सम्बंधित अधिकारियो के वेतन से ,सत्ता में बैठे लोगो से ,ये उनकी अपराधिक लापरवाही है ,उनका कुछ नहीं नुकसान होता इस लिए अंधे बने बैठे है ,

सभी देस भक्त है

कांग्रेस कहती है अन्ना जी और बाबा रामदेव बीजेपी के एजेंट थे अब यह बात खुल के सामने आ गयी है,,,,,, बीजेपी कहती है केजरीवाल जी और आप की टीम कांग्रेस के एजेंट है ,लगता है इस देस में अपनी मर्ज़ी से सोचने का कोई हक नहीं ,लगता है जात पात जैसी ब्य्वास्थाये बोद्धिक लोगो में भी घर कर गई है ,तभी तो कोई खुद को कमयूनीस्ट ,कोई खुद को कम्युनअल ,कोई खुद को लिबरल ,और ना जाने ऐसे कितने जात में ये लोग बंट गए है ,जैसे जातिवाद ने हिंदुत्व को कमजोर किया वैसे ही ये लोग अपने अहम् के खातिर देस को कमजोर कर रहे है, हाल के जो भी आन्दोलनकारी है सब के सब भारत माँ के एजेंट है ,देस हित इनका सोच है ,इनके अपने तरीके है लरने के, समय के साथ साथी और तरीके बदल रहे है ,इससे इनकी बिस्व्सनियता कम नहीं होती ,कोई कहे आप केजरीवाल के बिचारधरा को क्यों मानते हो ,कोई कहे आप मोदी की बिचारधरा क्यों मानते हो ,एक जागरूक नागरिक होने के नाते,,,, देस की आतंरिक और बाहरी दोनों समस्याओ पर हमारी भी नज़रे रहती है, इस देस का अभी जो जयादा भला कर सकेगा. जिसकी स्वीकार्यता जयादा होगी ,जहा मेरा वोट बर्बाद ना हो, जो बेईमानो को जिसका पर्याय कांग्रेस बन चुकी है, को सबक सिखाये उसे हम चुनेगे, इस देस की जनता ने कांग्रेस ,बीजेपी या आप जैसो को अपना ठिका नहीं दे दिया है ,जनता उसी के साथ होगी जिसके साथ वो और उसका देस सुरक्षित हो, उसे किसी के बिचारधरा से कोई मतलब नहीं क्युकी बिचारधरा परिवर्तनशील होता है उसमे नयापन आती रहती है | 

बुधवार, 17 जुलाई 2013

हमारा कानून

आइये फिर से समझते है भारतीय कानून को हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, लगभग वही कानून बस थोरे बहुत बदलाव के साथ आज भी बदस्तूर जारी है , 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया |1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी|, और वही दमन और अत्याचार वाला कानून "इंडियन पुलिस एक्ट" आज भी इस देश में बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले चल रहा है | और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में| तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की, | अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए | उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया | पुलिस को एक डंडा थमा दिया गया और ये अधिकार दे दिया गया कि अगर कहीं 5 से ज्यादा लोग हों तो वो लाठी चार्ज कर सकता है और वो भी बिना पूछे और बिना बताये ,पुलिस को तो Right to Offence है लेकिन आम आदमी को Right to Defense नहीं है | आपने अपने बचाव के लिए उसके डंडे को पकड़ा तो भी आपको सजा हो सकती है क्योंकि आपने उसके ड्यूटी को पूरा करने में व्यवधान पहुँचाया है और आप उसका कुछ नहीं कर सकते |अपमानजनक बेवहार पुलिस मनोबल तोरने के लिए करती है जेल मैनुअल के अनुसार आपको पुरे कपडे उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो | और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो जल्दी मरे, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है | अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को, बैल को, भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल होगी लेकिन उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकलकर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्योंकि आप Export Income बढ़ा रहे हैं | अब थोरा समझते है उनके द्वारा स्थपित कोर्ट कचहरी को , कहा जाता है वकील,जज जो कला कोट पहनते है वो भोतिक वस्तुओ से उदासीनता का प्रतिक है ,ये बिलकुल ढकोसला है , - हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड | इंग्लैंड में चुकी साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया|, हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है हमें इस ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, कोई और रंग भी तो हम चुन सकते थे काला रंग की जगह, लेकिन नहीं | ,पहले जज को हुजुर या योर हाईनडनेस कह कर सम्भोदन किया जाता था आज़ादी के बाद भारतीय जजों ने ऐसा कहने से मना कर दिया ,खैर जैसा भी हो आज भी जो थोरा बहुत देस में कायदा कानून है वो भारतीय कोर्ट के ही देंन है ,आज भी हमारे यहाँ काबिल और इमानदार जजों की कमी नही .............पर समय के साथ उचित बदलाव तो होना हीं चाहिए ,जो हर उन्नत समाज में होता रहता है |

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

आज के सन्दर्भ में कानून

IPC अर्थात Indian Penal Code अंग्रेगो द्वारा बनाया गया कानून ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में, ये कानून अंग्रेजों का एक और गुलाम देश है,  Ireland. इसके Irish Penal Code की फोटोकॉपी है हमारा कानून , वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों का एक अधिकारी था .वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा |ये वही महासय जिन्हों ने हमारे यहाँ अंग्रेजी शीक्छा की निब रखी, और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी. ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा" | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है | और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं | 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है | IPC का आधार ही ऐसा है | और मैकोले ने लिखा था कि "भारत के लोगों के मुकदमों का फैसला होगा, न्याय नहीं मिलेगा" | मुक़दमे का निपटारा होना अलग बात है, केस का डिसीजन आना अलग बात है, केस का जजमेंट आना अलग बात है और न्याय मिलना बिलकुल अलग बात है | अब इतनी साफ़ बात जिस मैकोले ने IPC के बारे में लिखी हो उस IPC को भारत की संसद ने 65 साल बाद भी नहीं बदला है ,हमारे कानून का स्वरुप अधिनायकवादी है ,ना की जनसुलभ ,इनमे सुधार होना चाहिए ,इसे जनता के हितैसी स्वरुप में होना चाहिए ,ताकि कोई अपराधी कानून का फ़ायदा ना उठा सके ,आज सारे नेता तमाम तरह के आरोपों और घोटालो में इसी कानून की आर में बच निकलने का रास्ता ढूंड लेते है |

सोमवार, 15 जुलाई 2013

कांग्रेस का ओझा

हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी,. न जाने कितने सवालों की आबरू रखी– मनमोहन सिंह
साम्प्रदायिकता के नंगेपन से धर्मनिरपेक्षता का बुरका अच्छा– सकिल अहमद ,मनीस तिवारी ,अजय माकन 
ये है कांग्रेस के महान लोग और ऐसी है इनकी जबाबदेही ,आरोप का जबाब आरोप से देते है ,पहली बार ये लोग तिलमिला रहे है ,इनकी चमरी कोई उधेर रहा है ,जनता तैयार है नमक लगाने को ,राहुल गाँधी का आभामंडल खत्मः हो गया, और उनका असलियत देस जान गया है,मोदी जी के सवालो में जनता को अपना सवाल दिख रहा है ,जनता कांग्रेस की खिज़ पर मज़े ले रही है ,साम्प्रदायिकता को इन्हों ने शमसान जैसा बना डाला था ,और वहा भुत होने का भ्रम फैला रखा था ,इन्हें मोदी जी के रूप में देस को एक ओझा मिल गया है ,जरुरत है मुसलमानों को हकीकत समझने की वे भी इस देस के नागरिक है तरक्की से उनका भी फायदा होगा ,वो vip है इसका भ्रम उन्हें छोड़ना होगा, इस बार हिन्दू भी अपना वोट का ताकत दिखलायेगा ,नेता उन्हें मुर्ख बनाते है खुद की छोटी छोटी मांगो के बदले में कोंग्रेस को सपोर्ट कर वो अपना और इस देस का नुकसान कर रहे है ,धर्म के प्रति हम भी कोई आपसे कम आदर नहीं रखते पर हम दिखावा कम करते है ,कल ABPन्यूज़ पर बिजय बिद्रोही ने कहा मोदी बुरका शबद के बदले चादर का भी इस्तमाल कर सकते थे. क्यों भाई मुस्लमान कोई कुम्हरा का फुल है जो ऊँगली दिखाने से मुरझा जायेगा ,वे भी इन्सान है इन्सान ही रहने दो ,उन्हें भी उम्मीद करो वे भी धर्म को बाजू में रख देस और समाज के बारे में सोचे ,ये जिमेदारी सिर्फ हिन्दुओ की नहीं है

रविवार, 14 जुलाई 2013

आन्दोलन

अंग्रेजो का खुद का इतिहास बताता है ,की भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था वो अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था | 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में मौजूद 99 % अंग्रेजों को भारत के लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था | लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे | हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस क्रांति को सिपाही विद्रोह के नाम से पढाया जाता है |1857 की गर्मी में मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने शुरू किया था, लेकिन एक आम आदमी का आन्दोलन बन गया और इसकी आग पुरे देश में फैली और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था | भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था | लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया | धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया | और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो या मरणासन्न | बिठुर के ही नाना जी पेशवा थे और इस क्रांति की सारी योजना यहीं बनी थी इसलिए अंग्रेजों ने ये बदला लिया था | उसके बाद उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए जरूरी होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना शुरू किया | अंग्रेजों ने कानून तो 1840 से ही बनाना शुरू किया था और मोटे तौर पर उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के शासन करने के लिए जरूरी होता है | आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के हैं | 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लुटा उसके सारे रिकार्ड बताते हैं कि करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुटा अंग्रेजों ने इस देश से | हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए, अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं,अंग्रेजो ने फिर चतुराई से भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना करवाई , 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिती के साथ 28 दिसंबर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके प्रथम महासचिव(जनरल सेक्रेटरी) ऐ ओ ह्यूम थे.अपने शुरुवाती दिनों में कॉंग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्गीय संस्था का था। जिसका मुख्या उद्देश्य कोंग्रेस की सहायता करना था आज़ादी से पहले और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया.अंग्रेजो के फुट डालों राज़ करो के सिद्धांत को इसी ने पूरी तरह से अपनाया अपने जन्म से ही यह पार्टी हिंदु विरोधी पार्टी रही हैं. भगत सिंह को फांसी लगाने का विरोध नहीं किया आजाद जी को मरवा डाला .क्रांतिकारियों को आतंकवादी बताया करते थे.नेताजी को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटने को मजबूर किया.अपने स्वार्थ के लिए देश का बंटवारा मंज़ूर किया.यदि बंटवारा हो ही गया था तो पूरी तरह से होने नहीं दिया।की बाद के झगरो का लाभ उठाते रहेगे देश के विभाजन की जिम्मेदार मुस्लिम लीग को सरकार में साझा किया. देश में आपातकाल लागू किया. स्वर्ण मंदिर पर हमला किया और उसे दूषितं किया. इंदिरा के मरने पर देश में 20000सिक्खों का दर्दनाक क़त्ल करवाया मतलब के लिए इसने हर किसी का इस्तमाल किया अब आप ही सोचिए ये पार्टी हम भारतीय लोगो का प्रतिनिधित्व करने के लिए है या हम पर शासन करने के लिए

हमारा बुध्हीजीवी बर्ग हमेसा ही कायर और धूर्त रहा है

इस देस में जयादातर बुध्हीजीवी बर्ग हमेसा ही कायर और धूर्त रहा है ये लोग अपने देस और मात्रभूमि से गद्दारी करने में अपना दिमाग जयादा खपाते है, इनका समाज कम पढ़ा लिखा,पिछरा और धर्म दयालु है ,इसी में इनकी तरक्की है ,अगर हमारे पूर्वजो के समय से ही इस तरह के लोग समाज और अपने धर्म के बारे में जरा भी सोचते तो हमारे देस में कई तरह की बुराईया होती ही नही ,ये बोद्धिक स्तर पर साहसी होते है इस लिए देवत्वं का भय इन्हें नहीं होता,ये इसी दुनिया में अपना देवता खोज लेते है और उसका भक्ति करते है उसके लिए ये दलीले गढ़ते है , देस में कथित सेकुलरओ को सेकुलरबाज़ी की इतनी आदत पर गई है की ये खूद को VIP समझने लगे , इन्हें इससे आगे कुछ दीखता ही नहीं है ,ये अंधे लोग सबको अँधा समझते है ,इसलिय कोई जो लिक से हट कर कुछ भी बोल दे ये गरे मुर्दे उखार उखार कर उसका  काम तमाम कर देंगे. पहले इन्हें चाटुकार भी कहा जाता था ,ये लोग अक्सर खानदानी होते है ,इनका सिधांत होता है की जिस सीडी से ऊपर चढो ऊपर चढ़ने के बाद उसे ऊपर खींच लो ताकि दूसरा ऊपर ना पहुच पाए, ये अन्दर से हीन भावना से ग्रसित और भयभीत होते है, सता के केंद्र बदलते ही अक्सर इनका सिद्धांत बदल जाता है ,अपने से कमजोर को ये हिन् भावना से देखते है और दूर देस के लोगो, बिद्वानो का ये तलवा चाटते है ,इनका रासट्रवाद में कोई भरोसा नहीं होता, पर सत्ता के सबसे जयादा यही लोग मज़े लेते है ,ये चारणवादी लोग कभी बर्दास्त नहीं कर सकते कोई आम आदमी आगे बढ़ कर लोगो को एक कर दे और कोई लोकनायक बने, ये अवतार गढ़ते रहते है ,और चालीसा गाते है ,कर्म करने के वक़्त ये लोग गायब हो जाते है ,टिप्पणियाँ करने में आगे रहते है ,इनका इस देस में सबसे मजबूत गठबंधन है ये दलों से ऊपर है ,ये इतिहास को झुट्लाते है, और हमारे अन्दर हिन् भावना को भरने का काम करते है इनके अनुसार हमारे धर्म और संस्कृति में गर्व करने लायक कुछ भी नहीं है हम अधम लोग है ,इन्ही खुबिओ के कारन अब तक सरकारे इन्हें हमारी पाठ्यक्रम और शीकछा का ठेका देती रहती है ,और इन्ही कारणों से प्रवावित हो कर बाकि इन्हें अपना आदर्श मानते है पर देस के हे महान बामपंथियो ,समाजवादियो,कांग्रेसियों,झूठे इतिहासकारों. अब रस्त्र्वादियो का का वक्त आने वाला है सब लोग आप को पहचान गए है |

सोमवार, 8 जुलाई 2013

राजनीति

अक्सर हम समाचार पत्रों में पढ़ते है या टीवी चैनलों में देखते सुनते है .......
गरीबी पर राजनीति नहीं होनी चाहिये ,
बेरोज़गारी पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
प्रकिर्तिक आपदा पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
बिदेसी मामलो पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
आतंकवाद पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
नक्सलवाद पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
धर्म पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
सेना , पुलिस के मामलो पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
बिदेसी मामलो पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
क्रिकेट पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,
भूख कुपोसन पर राजनीति नहीं होनी चाहिये,

तो फिर राजनीतिक पार्टिया है किस लिय,ये और कोई काम तो करते नहीं राजनीति कैसे नहीं करेंगे ,यही लोग तो है जो बिसुध्ह रूप से अपना काम करते है, राजनीति करने का काम| और फिर देखिये इस मिडिया को हमें क्या समझाती है, हर उस बिसय पर राजनीति नहीं होनी चाहिए जहां सरकारे बिफल है ,हमारी मिडिया सरकार के कुकर्मो का वकालत करती है ,वो हमे भरमाती है मुद्दों से ,ये झूठे मुद्दे बनाती है ,ये सनसनी फैलाती है ,रिपोर्टर में एक्टर दीखता है ,ये दम्भी हो गए है ,सारे बड़े कार्पोरेट घराने मिडिया हाउस खोले बैठे है , ये सेवा भाव नहीं सिर्फ बिजनेस है जहां पावर और पैसा दोनों है ,मिडिया के दम पर ये राजनीतिक पार्टियों तक से मोलभाव करते है ,यही वज़ह है की रोज़ एक नया चैनल खुल रहा है,सेवा भाव और सामाजिक कार्यो के लिए नहीं पैसे कमाने के लिए, इनके खुद के महकमे में तो और भी जयादा भ्रष्टाचार और शोसन है ,लोगो को रोज़गार चाहिए और इन्हें मुफ्त में पत्रकार ,ये पत्रकारों को जितना वेतन देते है, उतने में आज के वक्त में जेब भी खर्च न निकले ,तो फिर पत्रकार खबरे छापने के लिए लोगो से पैसे मांगते है, छोटे नेता या बयपारी पैसा देते भी है ,ये इलाके में होने वाले गलत कार्यो के बदले में पैसे की उगाही करते है ,ये ब्लैकमेलिंग तक से बाज़ नहीं आते ,बड़े स्तर पर तो इससे भी बुरा हाल है,समझ में नहीं आता इक चैनेल कहता है किसी तरह का समाचार चलवाना या रुकवाने की कोई बात करे तो हमें खबर करे ये चेतावनी है या निमंत्रण , सभी चैनलों या समाचार पत्रों की बुनियादी बाते एक जैसी ही होती है ,इनका दिवालियापन ही है की ये समाचार में भी मनोरंजन करवाते है ,जनता से जुड़े मुद्दे नाम मात्र के उठते है ,राजनीतिक खबरो की प्रमुखता होती है ,पेड न्यूज़ की भरमार है फिर भी कुछ अच्छे लोग है इस पेसे में जिनके वज़ह से पत्रकारिता को इज्ज़त के नज़र से देखा जाता है |