आइये फिर से समझते है भारतीय कानून को हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, लगभग वही कानून बस थोरे बहुत बदलाव के साथ आज भी बदस्तूर जारी है , 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया |1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी|, और वही दमन और अत्याचार वाला कानून "इंडियन पुलिस एक्ट" आज भी इस देश में बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले चल रहा है | और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में| तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की, | अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए | उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया | पुलिस को एक डंडा थमा दिया गया और ये अधिकार दे दिया गया कि अगर कहीं 5 से ज्यादा लोग हों तो वो लाठी चार्ज कर सकता है और वो भी बिना पूछे और बिना बताये ,पुलिस को तो Right to Offence है लेकिन आम आदमी को Right to Defense नहीं है | आपने अपने बचाव के लिए उसके डंडे को पकड़ा तो भी आपको सजा हो सकती है क्योंकि आपने उसके ड्यूटी को पूरा करने में व्यवधान पहुँचाया है और आप उसका कुछ नहीं कर सकते |अपमानजनक बेवहार पुलिस मनोबल तोरने के लिए करती है जेल मैनुअल के अनुसार आपको पुरे कपडे उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो | और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो जल्दी मरे, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है | अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को, बैल को, भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल होगी लेकिन उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकलकर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्योंकि आप Export Income बढ़ा रहे हैं | अब थोरा समझते है उनके द्वारा स्थपित कोर्ट कचहरी को , कहा जाता है वकील,जज जो कला कोट पहनते है वो भोतिक वस्तुओ से उदासीनता का प्रतिक है ,ये बिलकुल ढकोसला है , - हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड | इंग्लैंड में चुकी साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया|, हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है हमें इस ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, कोई और रंग भी तो हम चुन सकते थे काला रंग की जगह, लेकिन नहीं | ,पहले जज को हुजुर या योर हाईनडनेस कह कर सम्भोदन किया जाता था आज़ादी के बाद भारतीय जजों ने ऐसा कहने से मना कर दिया ,खैर जैसा भी हो आज भी जो थोरा बहुत देस में कायदा कानून है वो भारतीय कोर्ट के ही देंन है ,आज भी हमारे यहाँ काबिल और इमानदार जजों की कमी नही .............पर समय के साथ उचित बदलाव तो होना हीं चाहिए ,जो हर उन्नत समाज में होता रहता है |
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