IPC अर्थात Indian Penal Code
अंग्रेगो द्वारा बनाया गया कानून ये बनी 1840 में और भारत में
लागू हुई 1860 में, ये कानून अंग्रेजों का एक और गुलाम देश है, Ireland. इसके Irish Penal Code की फोटोकॉपी है हमारा
कानून , वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland
में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में
इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है
| अंग्रेजों का एक अधिकारी था .वी.मैकोले, उसका कहना था कि
भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को
पूरी तरह से समाप्त करना होगा |ये
वही महासय जिन्हों ने हमारे यहाँ अंग्रेजी शीक्छा की निब रखी, और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी. ड्राफ्टिंग
करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि
"मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है
जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की
जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन
भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो
प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है
कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर
स्थापित होगा" | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही
है | और आजादी के 64
साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल
देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो
पा रहे हैं | 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं
लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है | IPC का आधार ही ऐसा है | और मैकोले ने लिखा
था कि "भारत के लोगों के मुकदमों का फैसला होगा, न्याय नहीं
मिलेगा" | मुक़दमे का निपटारा होना अलग बात है, केस का डिसीजन आना अलग बात है, केस का जजमेंट आना
अलग बात है और न्याय मिलना बिलकुल अलग बात है | अब इतनी साफ़ बात जिस मैकोले ने IPC के बारे में लिखी
हो उस IPC को भारत की संसद ने 65 साल बाद भी नहीं
बदला है ,हमारे कानून का स्वरुप अधिनायकवादी है ,ना की जनसुलभ
,इनमे सुधार होना चाहिए ,इसे जनता के हितैसी स्वरुप में होना चाहिए ,ताकि कोई
अपराधी कानून का फ़ायदा ना उठा सके ,आज सारे नेता तमाम तरह के आरोपों और घोटालो में
इसी कानून की आर में बच निकलने का रास्ता ढूंड लेते है |
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