कुछ दिनों से हमारे यहाँ खूब बारिस हो रही है ,एक तो गिला मोसम दूसरा
सावन ,ऐसे में महादेव का स्मरण कैसे ना हो , मुझे याद आ रहा है पिछले साल लगभग इसी
समय पर हमारा कैलास मानसरोवर यात्रा खत्म हुआ था, इस यात्रा से मेरे जीवन में कई
बदलाव आए | इस साल की आपदा को देखते हुए हम सब भाग्यशाली थे जो हमारा यात्रा नीरबिघ्न
और उल्लासपूर्वक संपन्न हुआ था |लगभग एक साल बीत गए पर लगता है जैसे कल की बात हो
, सारे सहयात्री बहुत याद आ रहे है,,,,,,,महीने भर आखिर हम सब परिवार के तरह से रहे
थे ,कई बार आपस में नोक-झोक भी हुई पर उससे आपसी समझ बढ़ी, हम सब में कई तरह की
असमानता थी ,कोई पढ़ा लिखा ज्यादा था ,कोई पैसा वाला ज्यादा था ,कोई शारीर से बलवान
था ,कोई धर्म को ज्यादा जनता था ,कोइ खुशमिजाज़ ज्यादा था ,जितने लोग उतनी खासियते
,पर सब में एक बात बराबर की थी “सब भोले के भग्त थे” सब में अच्छाईया थी,,,,आज
रास्ते की हर बात याद आ रही है अल्मोरा, चकोरी में बिताई शाम और रूम पाने की वो जद्दोजहद
या नारायणआश्रम में घोरे वालो का कोलाहल ,जंगल चट्टी की चढाई ,चिया लेख की
खूबसूरती......उन कुहासो के बिच से गुजरना जैसे कोई रहस्य से पर्दा उठ रहा हो ,वो
आखरी गाव ग्राम्यांग लगता था जहा जिन्दगी अपने खुबसूरत मोर पर ठहर गयी हो ,ॐ पर्बत
जहा हर नास्तिक आस्तिक बन जाये.......हर किसी के मन में अध्यात्म जग जाये ,वहा नाबिदांग
से भोर अँधेरे में एक साथ चलना वो टोर्च की रोशनी और सारे घोरो की घंटीयो का शोर अद्भुत
रोमांच पैदा करता था ,लिपू लेख की ठण्ड ,चीन में प्रवेस करने की उत्कंठा ,जैसे हम
सब कुछ दिनों के लिए किसी रोमांचक उपन्यास की किरदार हो गए हो ,कैलास के दर्सन पा
कर धन्यभाग हो जाना ,डोल्मा पास की कठिन चढ़ाई ,जोनजारबू की मुस्किल भरी शाम ,”चरणअस्पर्स” का अनोखा
एहसास,,,,,, जहा “मै” कुछ भी नहीं था शिव ही शिव “सबकुछ” का आभास होना..... वहा वो
आंसुवो का सैलाब बच्चो की तरह से रोना ,,,,,,,,,,,, मानसरोवर की वो सितारों भरी
राते जिसे कई लोगो ने जाग कर काटी, वो चटकीला धुप लिये सुबह ,छत सा असमान ,पास की
बर्फीली पहारो से आती हुई सर्द हवाए ,खुद के इक्छा अनुसार पूजा ,और स्वं की
तलास...... मानसरोवर में बिताये वो सकुनं के पल जो शायद इस जिंदगी में दोबारा कभी ना
मिले ,मानसरोवर को छोरते वक़्त का वो अहसास जैसे यहाँ अपना कुछ छुटा जा रहा है ,फिर
यात्रा पूरा कर लेने की खुशी ,बिजेता होने का गुरुर, बस में बेसुध सोना , आपस की शरारते,
सारे गिले सिकवे भूल जाना, अब सब एक दुसरे के दोस्त बन चुके थे ,फिर दिल्ली पहुचना
जी भर के बाते भी ना कर पाना और फिर एक दुसरे से बिछर जाना आज भी उस यात्रा और उन
यात्रियों की बहुत याद आती है ............
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