१-तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम
गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं
वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो, अमीरी और ग़रीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी ख़राबी है
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी ख़राबी है
तुम्हारी मेज़ चांदी की, तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रकाबी है
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रकाबी है
२-जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा
देखिए
आप भी इस
भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए
जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का
मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए
जल रहा है देश, ये बहला रही है क़ौम को
किस क़दर अश्लील है संसद की भाषा देखिए
किस क़दर अश्लील है संसद की भाषा देखिए
मत्स्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का
शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिए
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिए
३-मुक्ति का़मी चेतना अभ्यसर्थना इतिहास की
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की।
यक्ष प्रश्नों में उलझकर रह गयी बूढी सदी
क्या प्रतीक्षा की घडी है या हमारे प्यास की।
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी की आखिर क्या दिया
सेक्स की रंगिनिया या गोलियां सल्फास की।
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की।
यक्ष प्रश्नों में उलझकर रह गयी बूढी सदी
क्या प्रतीक्षा की घडी है या हमारे प्यास की।
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी की आखिर क्या दिया
सेक्स की रंगिनिया या गोलियां सल्फास की।
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