मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

हिंदी पीसी दुनिया : डाटा कार्ड की सेटिंग करे और किसी भी कम्पनी के सिम से नेट चलाए

भारत में शिक्षा का निम्नस्तर और कारण

15 साल पहले मैनेजमेंट गुरु पीटर ड्रकर ने एलान किया था, "आने वाले दिनों में ज्ञान का समाज दुनिया के किसी भी समाज से ज़्यादा प्रतिस्पर्धात्मक समाज बन जाएगा. दुनिया में गरीब देश शायद समाप्त हो जाएं लेकिन किसी देश की समृद्धि का स्तर इस बात से आंका जाएगा कि वहाँ की शिक्षा का स्तर किस तरह का है." संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो भारत की उच्चतर शिक्षा व्यवस्था अमरीका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर आती है लेकिन जहाँ तक गुणवत्ता की बात है दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है, द टाइम्स विश्व यूनिवर्सिटीज़ रैंकिंग (2013) के अनुसार अमरीका का केलिफ़ोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी चोटी पर है और हार्वड दुसरे नंबर पर जबकि भारत के पंजाब विश्वविद्यालय का स्थान विश्व में 226 वाँ है, अब कारणों की बात करते है........
1: स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुँच पाता है. भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम यानी सिर्फ़ 11 फ़ीसदी है. अमरीका में ये अनुपात 83 फ़ीसदी है.
2: इस अनुपात को 15 फ़ीसदी तक ले जाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को 2,26,410 करोड़ रुपए का निवेश करना होगा जबकि 11वीं योजना में इसके लिए सिर्फ़ 77,933 करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया गया था..
 3: हाल ही में नैसकॉम और मैकिन्से के शोध के अनुसार मानविकी में 10 में से एक और इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके चार में से एक भारतीय छात्र ही नौकरी पाने के योग्य हैं. (पर्सपेक्टिव 2020) भारत के पास दुनिया की सबसे बड़े तकनीकी और वैज्ञानिक मानव शक्ति का ज़ख़ीरा है इस दावे की यहीं हवा निकल जाती है.
 4: राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद का शोध बताता है कि भारत के 90 फ़ीसदी कॉलेजों और 70 फ़ीसदी विश्वविद्यालयों का स्तर बहुत कमज़ोर है.
 5: भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का आलम ये है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी 15 से 25 फ़ीसदी शिक्षकों की कमी है.
 6: भारतीय विश्वविद्यालय औसतन हर पांचवें से दसवें वर्ष में अपना पाठ्यक्रम बदलते हैं लेकिन तब भी ये मूल उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहते हैं.
 7: आज़ादी के पहले 50 सालों में सिर्फ़ 44 निजी संस्थाओं को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा मिला. पिछले 16 वर्षों में 69 और निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता दी गई.
8: अच्छे शिक्षण संस्थानों की कमी की वजह से अच्छे कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए कट ऑफ़ प्रतिशत असामान्य हद तक बढ़ जाता है. इस साल श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स के बी कॉम ऑनर्स कोर्स में दाखिला लेने के लिए कट ऑफ़ 99 फ़ीसदी था.
9: अध्ययन बताता है कि सेकेंड्री स्कूल में अच्छे अंक लाने के दबाव से छात्रों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बहुत तेज़ी से बढ़ रही है.
10: भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए हर साल सात अरब डॉलर यानी करीब 43 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च करते हैं क्योंकि भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का स्तर घटिया है.
ये एक कड़वा सच है कि भारत के आधे से अधिक प्राथमिक विद्यालयों में कोई भी शैक्षणिक गतिविधि नहीं होती. अब समय आ गया है कि चाक और ब्लैक बोर्ड के ज़माने को भुला कर गांवों में भी प्राथमिक शिक्षा के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाए. सैम पित्रोदा कहते हैं, "आज नियम-कानूनों और भ्रष्टाचार की वजह से शिक्षा के क्षेत्र में घुसना लगभग नामुमकिन हो गया है. अगर आप घुस भी जाते हैं और आपको लाइसेंस मिल भी जाता है तो आप शिक्षा की गुणवत्ता नहीं बनाए रख सकते. जबकि होना इसका ठीक उलटा चाहिए.''

साभार :बीबीसी 

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

लोकतांत्रिक ब्यवस्था में जनता सर्वोच्च है

लोकसभा ने शुक्रवार देर रात जन प्रतिनिधित्व (संशोधन व मान्यकरण) बिल 2013 को करीब 15 मिनट की बहस के बाद पास कर दिया हमारे देस के नेता सच में एकजुट तो होते है पर बार बार देस को संसद की सर्वोचता बतलाने के लिए , आखिर ये इस बात का खूंटा क्यों गारना चाहते है इससे ये साबित क्या करना चाहते आखिर संसद की सर्वोचता को किससे खतरा है लोकतंत्र के चार स्तंभ है 1- व्यवस्थापिका (संसद),2- कार्यपालिका (रास्ट्रपति), 3-न्यायपालिका, 4-  मीडिया,,,,,,अब जहां तक मिडिया से खतरे की बात है तो उसे बहुत हद तक पूजीवादी तरीको से कंट्रोल किया जाता है,मिडिया कसमसाता तो बहुत है पर सरकार और नेतावो के बिना उसका भी काम नहीं चलने वाला ,और वो शोर मचाने के आलावा कर भी क्या सकता है ,कार्यपालिका तो सरकार का हाथ, आंख, कान और नाक होता है, जैसा सरकार वैसी कार्यपालिका | अब बचता है न्यापालिका संसद को असली खतरा इसी से है यही बार बार नेतावो के रास्ते को रोकता है ........
       कभी ये किसी भ्रष्टाचार के मामले पर खुद ही संज्ञान लेले रहा है ,तो कभी किसी नेता को सजा सुना देता है ,कभी किसी गलत राजनीतिक फैसले पर रोक लगा देता है अब तो इसने हद ही कर दी राजनीतिक पार्टियों को RTI के दायरे में आना परेगा और तो और दो साल की सजा पाए नेता चुनाव भी नहीं लर पायेगा ,कैद में बंद नेता भी चुनाव नहीं लर पायेगा अब ऐसे नेता तो हर पार्टी में है तो एकजुटता तो होनी ही चाहिए ,आखिर वे नेता ठहरे जुल्म कैसे सह सकते है ,ये काम तो जनता का है ,इस लिए संसद की सर्वोचता बहुत जरुरी हो गई है,,,,,
                       संसद की सर्वोचता की सबसे ज्यादा चिंता लालू ,मुलायम जैसे दागी नेतावो को है ,यही सबसे जयादा शोर मचा रहे है ,ये सामंती सोच के जातिवादी नेता अपना भाबिस्य खतरे में देख रहे है ,ये लोकतंत्र के कमियों से हमेसा अपना उल्लू सीधा करते रहे है ,ये खुद को और अपने परिवार को हमारा स्वाभाविक शासक मान बैठे है ,इनके मनमानियो पर कोई अंकुस लगाए इन्हें बरदास्त नहीं ,तकलीफ इस बात की है भाजपा जैसी पार्टी भी इनका साथ दे रही है ,कांग्रेस तो देस का जितना बुरा हो उसमे अपना फाएदा ढूनढती है उसे बस राज़ करना है कैसे भी,,,,,,

               संसद की सर्वोचता का दंभ भरने वाले नेता क्या बतलाएगे लोकतंत्र में जनता का क्या स्थान है क्या जानता यहाँ केवल रूलिंग मटेरियल है ,सांसद को जनता अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनती है “मालिक” के रूप में नहीं और ये भी आजमाया हुआ है की ज़ब भी कोई इमानदार जनता के बिच आया है तो जनता ने उसका भरपूर समर्थन किया है,,,,,,,,नेता बयव्स्थाओ की कमियों को अपना हथियार बनाना छोर दे,,,,,, जनता मुर्ख नहीं जनता आक्रोस से उबल रही है............

रविवार, 8 सितंबर 2013

कविता - दे दिया जाता हूं - रघुवीर सहाय

दे दिया जाता हूं - रघुवीर सहाय
मुझे नहीं मालूम था कि मेरी युवावस्था के दिनों में भी
यानी आज भी
दृश्यालेख इतना सुन्दर हो सकता है:
शाम को सूरज डूबेगा
दूर मकानों की क़तार सुनहरी बुन्दियों की झालर बन जायेगी
और आकाश रंगारंग होकर हवाई अड्डे के विस्तार पर उतर आयेगा
एक खुले मैदान में हवा फिर से मुझे गढ़ देगी
जिस तरह मौक़े की मांग हो:
और मैं दे दिया जाऊंगा.
इस विराट नगर को चारों ओर से घेरे हुए
बड़े-बड़े खुलेपन हैं, अपने में पलटे खाते बदलते शाम के रंग
और आसमान की असली शकल.
रात में वह ज़्यादा गहरा नीला है और चाँद
कुछ ज़्यादा चाँद के रंग का
पत्तियाँ गाढ़ी और चौड़ी और बड़े वृक्षों में एक नयी ख़ुशबूवाले गुच्छों में सफ़ेद फूल
अन्दर, लोग;
जो एक बार जन्म लेकर भाई-बहन, माँ-बच्चे बन चुके हैं
प्यार ने जिन्हें गलाकर उनके अपने साँचों में हमेशा के लिए
ढाल दिया है
और जीवन के उस अनिवार्य अनुभव की याद
उनकी जैसी धातु हो वैसी आवाज़ उनमें बजा जाती है
सुनो सुनो बातों का शोर;
शोर के बीच एक गूंज है जिसे सब दूसरों से छिपाते हैं
- कितनी नंगी और कितनी बेलौस ! -
मगर आवाज़ जीवन का धर्म है इसलिए मढ़ी हुई करतालें बजाते हैं
लेकिन मैं,
जो कि सिर्फ़ देखता हूं, तरस नहीं खाता, न चुमकारता,
क्या हुआ क्या हुआ करता हूं.
सुनता हूँ, और दे दिया जाता हूँ.
देखो, देखो, अँधेरा है
और अँधेरे में एक ख़ुशबू है किसी फूल की
रोशनी में जो सूख जाती है
एक मैदान है जहां हम तुम और ये लोग सब लाचार हैं
मैदान के मैदान होने के आगे.
और खुला आसमान है जिसके नीचे हवा मुझे गढ़ देती है
इस तरह कि एक आलोक की धारा है जो बाँहों में लपेटकर छोड़
देती है और गन्धाते, मुँह चुराते, टुच्ची-सी आकांक्षाएँ बार-बार
ज़बान पर लाते लोगों में
कहाँ से मेरे लिए दरवाज़े खुल जाते हों जहाँ ईश्वर
और सादा भोजन है और
मेरे पिता की स्पष्ट युवावस्था.
सिर्फ़ उनसे मैं ज़्यादा दूर-दूर हूँ
कई देशों के अधभूखे बच्चे
और बाँझ औरतें, मेरे लिए
संगीत की ऊँचाइयों, नीचाइयों में गमक जाते हैं
और ज़िन्दगी के अन्तिम दिनों में काम करते हुए बाप
भीड़ में से रास्ता निकालकर ले जाते हैं
तब मेरी देखती हुई आँखें प्रार्थना करती हैं
और जब वापस आती हैं अपने शरीर में, तब वह दिया जा
चुका होता है.
किसी शाप के वश बराबर बजते स्थानिक पसन्द के परेशान संगीत में से
एकाएक छन जाता है मेरा अकेलापन
आवाज़ों को मूर्खों के साथ छोड़ता हुआ
और एक गूँज रह जाती है शोर के बीच जिसे सब दूसरों से छिपाते हैं
नंगी और बेलौस,

और उसे मैं दे दिया जाता हूँ. (1959), (संग्रह: सीढ़ियों पर धूप में)

जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आँसू’

 जयशंकर प्रसाद की कविताआँसू

जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छायी
दुर्दिन में आँसू बनकर
जो आज बरसने आयी।
ये मेरे क्रंदन में बजती
क्या वीणा? - जो सुनते हो
धागों से इन आँसू के
निज करुणा-पट बुनते हो।
रो-रोकर, सिसक-सिसककर
कहता मैं करुण-कहानी
तुम सुमन नोचते सुनते

करते जानी अनजानी।

कबीरदास की कविताएँ

कबीरदास की एक कालजई रचना .........
झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥
साँ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥



कबीर की एक और कविता है  
रहना नहीं देस बिराना है
यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े गल जाना है।
यह संसार काँट की बारी, उलझ पुलझ मरि जाना है।।
यह संसार झाड़ और झाखर, आग लगे बरि जाना है।

कहें कबीर सुनो भाई साधो, सद्गुरु नाम ठिकाना है।।

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

संघर्ष


कविता ...राजनीति


बरोदा के पुराना छात्र भुचुंग सोनम की कविताः

मेरे पास सिद्धांत है और कोई सत्ता नहीं 
तुम्हारे पास सत्ता है और कोई सिद्धांत नहीं 
तुम तुम हो 
मै मै हूं 
समझोते का सवाल ही नहीं 
तो शुरू होने दो युद्ध 
मेरे पास सत्य है और कोई ताकत नहीं 
तुम्हारे पास ताकत है और कोई सत्य नहीं 
तुम तुम हो 
मै मै हूं समझोते का सवाल ही नहीं 
तो शुरू होने दो युद्ध
तुम कुचल सकते हो मेरा सर 
मै लडूंगा 
तुम कुचल सकते हो मेरी हड्डियों
मै लडूंगा 
जिन्दा दफना सकते हो मुझे 
मै लडूंगा 
अपनी नसों मे दोरते हुए सत्य के साथ 
मै लडूंगा 
अपनी रत्ती रत्ती ताकात भर 
मै लडूंगा 
उखरती हुई अपनी आखरी साँस तक 
मै लडूंगा 
तब तक लडूंगा मै 
जब तक जमींदोज नहीं हो जाता 
तुम्हारे झूठो से बना हुआ किला 
जब तक की तुम्हारे झूठो से पूजा हुआ सैतान 
घुटने नहीं टेक देता सत्य के मेरे फरिस्ते के सामने

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

अदम गौंडवी की रचना

उतरा है रामराज विधायक निवास में। 

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में। 

आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में। 

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहां की नख़ास में। 

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में।
-अदम गौंडवी

अदम गौंडवी
गजल
पहले जनाब कोई शिगूफा उछाल दो।
फिर कर का बोझ कौम की गर्दन पे डाल दो।
रिश्वत को हक समझ जहां ले रहे हों लोग,
है और कोई मुल्क तो उसकी मिसाल दो।
औरत तुम्हारे पाँव की जूती की तरह है,
जब बोरियत महसूस हो घर से निकाल दो।
चीनी नहीं है घर में लो मेहमान आ गए,
महंगाई की भट्टी पे शराफत उबाल दो।

आनंद ताम्रकार की रचना

                                                                        करवाचौथ


कल रात नर छिपकली ने मादा छिपकली से कहा –
तूने आज मेरी लंबी आयु की कामना के लिए
उपवास नहीं रखा ?
ज़रा इंसानी समाज की बीवियों को देख
वो अपने पति के लिए
करवाचौथ का व्रत रख रही हैं
और यहाँ एक तू है
कि आज भी अपने शिकार को तक रही है।


इस पर मादा छिपकली बोली –
क्यों इसमें नाराज़गी की क्या बात है
और वैसे भी वो तो इंसानी ज़ात है
मैं उनकी तरह नहीं कर सकती
तुम्हारी खातिर मैं भूखी नहीं मर सकती
तुम क्यों इंसानी समाज की तुलना
अपने समाज से कर रहे हो
कहीं तुम भी तो इंसान नहीं बन रहे हो
इंसानी समाज में बहुत तबाही है
कहीं चोरी, डकैती, कहीं पैसा उगाही है


और तो और जो पत्नी
अपने पति की लंबी उम्र के लिए
उपवास रख रही है
वही पत्नी अपने उसी पति के हाथों
दहेज की बलि चढ़ रही है
अगर तुम भी उसी इंसानी सभ्यता को अपनाओगे
तो तुम्हारा क्या भरोसा
एक दिन शिकार की तलाश में
मुझे भी निगल जाओगे


जब इंसानी समाज में व्रत रखने वाली नारी का
सत्कार नहीं होता
तो अच्छा ही है कि हमारी कम्यूनिटी में
करवाचौथ नाम का
कोई त्यौहार नहीं होता।