गुरुवार, 3 नवंबर 2016

इस्लाम,खिलाफत और इस्लामी पंथ,

हर धर्म का मर्म होता है हिंदुत्व का मर्म है दया,करुना,शांति,त्याग, उसी तरह इस्लाम का भी अपना मर्म है, मुहम्मद इस्लाम के प्रवर्तक थे, उनसे पहले अरब में मूर्ति पूजा होती थी, मुहम्मद  का अर्थ होता है जिस की अत्यन्त प्रशंसा की गई हो” मुहम्मद साहब ने मक्का में अपने ही खानदान के चचरे भाइयो से (बद्र की लड़ाई) बिजयी युद्ध कर जिस धर्म को खड़ा किया वह आज तक अनवरत हिंसा में लिप्त है, अपने खालिफे ओहदे के लिय एक दुसरे के खून के प्यासे रहे, मुहम्मद सभी मुसलमानों के लिये आदरणीय रहे, उन्होंने अपने जीते जी अपना उतराधिकारी घोषित किया जिन्हें खलीफा कहा गया, जिनका प्रमुख उध्येस्य दुनिया पर इस्लाम का राज कायम करना था/है, खलीफा सबसे बड़ा इस्लामिक ओहदा आज भी है, मुहम्मद साहब ने अपने से बड़ी अमीर बिधवा औरत “खदीजा बिन्त खुवायलद” से पहला बिवाह किया इन्ही यहाँ वह रोजगार किया करते थे, बाद में उन्होंने उनके सम्पदा को इस्लाम के प्रचार प्रसार में लगाया, मुहम्मद साहब ने कुल तेरह शादियाँ की जिसमे छह साल की “आयशा बिन्त अबी बक्र” तक उनकी पत्नियाँ रही, गौरतलब है की मुहम्मद की सबसे प्यारी पत्नी आयसा के पिता अबूबकर इस्लाम के पहले खलीफा बने, यही आयसा बाद में मुस्लिमों में बिभाजन का कारन बनी और मुसल्मान शिया सुन्नी में बंटे, फिर दुसरे खलीफा बने (उमर इब्न अल-खतब) उमर, इनकी छह पत्नियाँ थी, उमर शुरू में बुत परस्ती करते थे, वे मक्का में एक समृद्ध परिवार से थे, वे मुसलमानों को पसन्द नहीं करते थे ना ही मुहम्मद साहब के मिशन को, बाद में यह अपने बहन और बहनोई के समझने पर मुसलमान बन गए और मुहम्मद साहब के बिस्वास पात्र साथी भी, उमर का साथ मिलने से मुहम्मद साहब की ताकत में इजाफा हुआ और इस्लाम को फ़ैलाने में भरपूर मदद मिला, उन्हें अबुबकर ने खलीफा बनवाया अबू बकर ने तीसरे खलीफा को भी खुद ही चुना क्युकी वह अली से नफरत करते थे,
तीसरे खलीफा थे उस्मान वो एक धनी व्यापारी थे, बाद में वह मुहम्मद साहिब के दामाद और उनके प्रमुख साथी बने, इनकी नव पत्नियाँ थी, इन्होने ही क़ुरान को संकलित कर पुस्तक का रूप दिया, लेकिन दुर्भाग्य मदीना में भीड़ ने कुरान से छेड़ छाड के आरोप में इनका क़त्ल कर दिया
और चौथे थे अली, अली मुहोम्मद के चचेरे भाई और सगे दामाद थे, इस कारन उनका मानना था की मुहम्मद के बाद उन्हें ही उनके बाद का स्थान मिलना चाहिए था, लेकिन बाकियों को यह मंजूर नहीं था उनका युध्ह मुहम्मद की पत्नी आयसा से हुआ, जिसमे अली की जित हुई और आयसा की मौत हुई, लेकिन ज्यादातर मुसलमान आयसा के साथ थे और यही से अली के समर्थक शिया(शिया का अर्थ होता है अली की टोली वाले) हो गए और बाकि सुन्नी, शिया मुसलमानों का मानना है कि पहले तीन खलीफ़ा इस्लाम के गैर-वाजिब प्रधान थे और वे हज़रत अली से ही इमामों की गिनती आरंभ करते हैं, इस्लाम में शुरुवाती चार खालिफवो का प्रमुख स्थान है जिन्हें राशिदुन कहा जाता है अर्थात सही मार्ग पर चलने वाला, मजेदार बात यह है की जिन चारो को सही रास्ते वाला बताया गया इनमे तिन खालिफवों को तो मुसलमानों द्वारा ही मार दिया गया, इन खलीफा के बाद हुए उम्मयद फिर अब्बासी फिर उस्मानी, 1924 में तुर्की के शासक कमाल पाशा ने खिलाफ़त का अन्त कर दिया और तुर्की को एक गणराज्य घोषित कर दिया। लेकिन आज फिर से बगदादी को खलीफा मान ISIS अपना खुनी खेल खेल रहा है,

मुसलमानों में कई पंथ है हनफ़ी पन्थ- इसके अनुयायी दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में हैं। मालिकी पन्थ-इसके अनुयायी पश्चिम अफ्रीका और अरब के कुछ भागों में हैं।शाफ्यी पन्थ-इसके अनुयायी अफ़्रीका के पूर्वी अफ्रीका, अरब के कुछ भागों और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं। हंबली पन्थ- इसके अनुयायी सऊदी अरब में है, शिया और सुन्नी के झगरे को तो सब जानते है,अहमदिया,बरेलवी देवबंदी,बोहरा,मुस्लमान भी देश में पाए जाते है,
अहमदिय्या समुदाय मुहम्मद को अन्तिम नबी नहीं मानता फिर भी स्वयं को इस्लाम का अनुयायी कहता है और संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकारा भी जाता है हालांकि कई इस्लामी राष्ट्रों में उसे मुस्लिम मानना प्रतिबंधित है। भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसार उनको भारत में मुसलमान माना जाता है,
बहाई भी इस्लाम से ही निकला,सय्यद अली मुहम्मद शिराज़ी इसके संथापक थे.. जिन्होंने अपने आपको पैगम्बर घोषित किया और नया धर्म ही चला दिया.. बाद में आखिर उनको मार डाला गया..
कादियानी (अहमदिया): ये भी इस्लाम का ही एक अंग है.. मिर्ज़ा गुलाम अहमद इसके संस्थापक हैं और इन्होने भी अपने आपको पैगम्बर घोषित किया,
नियाजी मुस्लिम: ये पन्थ शमा नियाजीद्वारा स्थापित किया है.. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गावं में.. आज इनके मानने वालों की संख्या लाखों में है.. ये पंथ काबा को आदम की कब्र मानता है..
वहाबी इस्लाम: सऊदी अरब और अन्य इस्लामिक देशो में ये मत ही सर्वोपरि है.. भारत में इसका केंद्र देवबंद है.. ये मत अपने आपको ही असली इस्लाम बताता है बाकी अन्य किसी भी इस्लामिक मत को ये नहीं मानता है.. इनमे अल्लाह पहले आता है बाकी सब कुछ उसके बाद, आज बहावी ही आतंक और कट्टरता के सबसे बड़े पोषक है,
इन सभी मुसलमानों की अलग अलग मस्जिदे है, अलग अलग रिवाज है,




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें