गुरुवार, 3 नवंबर 2016

झूठी धर्मनिरपेक्षता

मैंने यह कुछ पोस्ट सेकुलर दोस्तों के लिये लिखा है जो अपने धर्म में खूब बुराइयाँ देखते है,
हमारे धर्म में धर्म का अर्थ बताया गया है धारण करना, अब यह आप के ऊपर है आप क्या धारण करते है, जब कोई होली वाटर छिड़कवाता है तब वह इसाई बनता है, जब कोई खतना करवाता है तब वह मुसलमान बनता है हिन्दू होने के लिये बस खुद को हिन्दू मान लेना भर पड़ता है,
आज पूरी दुनियाभर में मात्र एक कड़ोर यहूदी बचे है, वे यहूदी जिनका धर्म इब्राहिमी था और जिससे ही इसाई और इस्लाम धर्म की उत्पति हुई, जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है, वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदमी कहा जाता है, आदम को ईसाईयत में एडम कहते हैं, जब सब एक जैसे ही ठहरे तो फीर धर्म परिवर्तन क्यों ? क्यों आपको आपके मन्यतावो के हिसाब से जीने देने को कोई मना करता है ?
आज अरब के खंडहर हमें हमारा भविष्य दिखलाते है, कश्मीर, केरल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान हमें आगाह करते है, हम आँख मुंद कर अपना जीवन तो बिता लेंगे लेकिन हमारी आने वाली पीढियों का क्या ? बर्मा में शांतिप्रिय बौध हिंसा पर उतारू है, मुट्ठी भर यहूदी सदियों से इन्हें लोहे के चने चबवा रहे है, जिनके प्रवर्तक सलीब पर चढ़े,प्यासे मर गयें वे बिस्तावादी है, और जबकि हमारे प्रवर्तक योध्हा थे, शसस्त्र थे हम शांतिप्रिय है, मिट रहे है, अगर हमारे पूर्वज भी कट्टर हुए होते तो आज हम अपनी ही भूमि पर अपनों से पराये हुए लोगो से संघर्ष की नौबत में न रहते,

इस्कान जैसी संस्थाओ से जुड़ कर गोरे हमारे कृष्ण को अपने गिरिजाघरो में रख रहे है, तो प्रगतिशील हिन्दू भी अब चर्च हो आते है, हमें भी अच्छे मुस्लमान पसंद है लेकिन उनकी समस्या है वे धार्मिक कट्टरता का खुल कर बिरोध नहीं करते, हमारी तरह अपने धर्म की बुराइयों पर चर्चा करना नहीं चाहते, ऐसा प्रतीत होता है की चाहे अनचाहे वे मुस्लिम जिहाद और खिलाफत का मौन समर्थन करते है, उनके लिये उनका मजहब सर्वोपरि है एडजस्ट होने का ठेका तो हमने ले रक्खा है,और इसी को वे/हम सेकुलरिज्म भी मानते है,

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