गुरुवार, 15 अगस्त 2013

इरोम शर्मिला की कुछ कविताये


(यह जानते हुए भी कि शब्‍दों की कविता शब्‍दों से बाहर निरर्थक है)


इरोम:एक

कौन है
जो सुन रहा है
इस पृथ्‍वी पर 
अकेला मौन तुम्‍हारा
अकेली चीख तुम्‍हारी.

इरोम:दो

यह हतप्रभ वितान
सुनता है तुम्‍हारी आंखों से कहे जा रहे
उन तमाम दृश्‍य कथाओं को
जो घट रहे हैं उसी के समक्ष
मानवता को शर्मनाक कलंक में बदलते

सुनो इरोम
सब देख सुन रहे हैं
     अपनी क्रूर आंखों और प्रमुदित कानों से
कोई असम्‍मानित कर रहा है अपनी मुस्‍कराहट
कोई जान रहा है केवल समाचार

तुम्‍हारे साथ ही खडे हैं ये समस्‍त शब्‍द
     भाषा और लिपि की वेशभूषा से बाहर
अपने होने की एकमात्र सार्थकता लिए हुए

इसलिए
और इसीलिए
शब्‍दों का सुरक्षा कवच बन गया है यह ब्रम्‍हाण्‍ड
और हम सबके हाथ
पयार्वरण बन अडिग तैनात हैं तुम्‍हारे पास

तुम हो
और केवल तुम ही रहोगी
अनवरत
हम सबकी आर्तनाद करती अबोध आवाज

इरोम: तीन

ग्रह और राशियॉं भी
डरते होंगे तुम्‍हारी देह के निकट आने को
नजर को खुद नजर लग चुकी होगी
     मौसम का चक्र भी खूब समझता होगा
तुम्‍हारी देह के लिए नहीं है बदलना उसका

तुम जहॉं हो
वहाँ तुम्‍हें देखने के लिए
प्रतिबंध लगा होगा तारों पर भी
बिना तुम्‍हारे पुर्णिमा
खुद ही ढ़ल जाती होगी अमावस्‍या में

कितनी चिडियाओं ने बनाए होंगे घर
कि तुम देखोगी एक मर्तबा उन्‍हें
     खेतों में उगी धान की बालियॉं
होड लगाती होंगी अपनी चुहल में
तुम्‍हारी देह में समाहित होने के लिए

तुम्‍हारी देह भी सोचती होगी
     सहेलियों फूलों और बरसात के प्रति
निष्‍ठुरता तुम्‍हारी
चुप हो जाती होगी फिर
तुम्‍हारे अपने बनाए मौसम का साम्राज्‍य देखकर

तुम समय में नहीं जी रही हो इरोम
समय तुम में जी रहा है
अपनी बेबस गिड़गिड़ाहट के साथ
हम सब देख पा रहे हैं
कंपकपाते समय के समक्ष
तुम्‍हारी निश्‍छल अबोध मुस्‍कराहट


     इरोम:चार

     कितना कुछ शेष है अभी
     भला-भला और खूबसूरत सा

     किसी गिलहरी की चपलता जैसा
     गुम हो जाना है समय की क्रूरता

     तर-बतर होना है तुम्‍हें
     खांगलेई की बरसात में
     बचपन की सहेलियों के साथ

     हवाओं की सरपट बहती इच्‍छाओं में
     शामिल हो जाना है तुम्‍हें
     तराइयों में टहलने के लिए
     कांग्‍ला फोर्ट में बैठकर
     पुनर्जन्‍म लेना है
     मणिपुर की शाश्‍वत नाभि से

     इसी जन्‍म में
     गले मिलना है बहुत देर तक
     अपनी माँ से
     सुबकती हुई खुशी के साथ

     बहुत कुछ शेष है अभी
     अशेष हो जाने के लिए

     इरोम:पांच

     एक इरोम शर्मिला है
     एक और मीरा है

     एक मणिपुर है
     एक और कृष्‍ण है

     एक समय है
     एक और बाँसुरी है
     एक विष का प्‍याला है
     एक और साजिश है

     एक कविता है
     केवल यही थोड़े से शब्‍द हैं.

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