रविवार, 7 जुलाई 2013

एक सुखद अहसास “कैलाश मानसरोवर यात्रा” की

जब मेरा कैलाश मानसरोवर के यात्रा के लिए चुनाव हो गया तो मेरे खुशी का ठिकाना नहीं था। वहाँ जाना मेरा सपना था ।चुनाव तो हो गया पर मन मे कई तरह की आशंकायें थी । कैसे जाना है क्या लेकर जाना है । कैसे लोग साथ मे मिलेंगे । रास्तें मे क्या होगा। फिर कुछ लोग मिले जो पहले गए थे, जिसमे बिजय शर्मा जी से कई बातों की जानकारी मिली और मन का विश्वास बढ़ा । मैंने रोज लगभग ६ किलोमीटर टहलना शुरू कर दिया जिसका रस्ते मे मुझे काफी फ़ायदा मिला ।
फिर मै दिल्ली पंहुचा गुजरात भवन मे हमें रुकना था ,मेरे पहुचने से पहले केवल २ लोग पहुचे थे गुजरात से मगनभाई और उनका साला सतीस भाई जो आगे चलकर मेरे अच्छे दोस्त बने शाम को आशाम से दीपक रंजन पहुचे जिनका हमलोगों ने मार्गदर्शन किया ,फिर वो भी हमारे दोस्त बन गए ,अगले दिन और भी कई लोग आये पर मै डॉ सुजीत सरन को ढून्ड रहा था ,वो पहले व्यक्ति थे जिनसे मेरा फोन पर भी लगातार संपर्क बना रहा था ,डॉ शरण यात्रा वाले दिन आये।
सारे यात्री गुजरात भवन पहुच चुके थे ,जान पहचान का दोर चल रहा था ,सब मन ही मन अपने अनुकूल दोस्त ढूंड रहे थे ,गुजरती भाइयो की संख्या सबसे जयादा थी ,उनमे कई लोग पहले से एक दूसरे को जानते थे ,गुजरात भवन मे गुजराती खाना की ब्यवस्था थी वहाँ मगन भाई ने मेरा खूब साथ दिया ,हम एक दिन साथ मे खरीददारी भी करने गए जहाँ हमने कई जरुरत की सामान ख़रीदे ,राजीव हमारे लैज्ननिग ऑफिसर थे चुकी वो देल्ही के रहने वाले थे इसलिए लेट से वो हमारे साथ हुए ,लोगो के आ जाने से हमारा उत्साह और भी बढ़ गया ,शोरगुल मे भी ढेर सारा आनंद आता था ,यात्रा समिति के उदय कोशिक जी और दीपा जी बिसेस रूप से सभी यात्रियों का ख्याल रख रहे थे ,दीपा जी का कई सारा बताया टिप हमारे पुरे रस्ते काम आया ,उनकी शाम की क्लास का कोई सानी नहीं हँसते हँसते ना जाने कितनी ज्ञान की बाते समझा देती थी ,कोशिक जी का परवचन भी लाजबाब था ,उनके यहाँ का साम को होने वाली आरती तो मै जीवन भर नहीं भूल पवूँगा बहुत सुकून मिलता था ,सच यात्रा की इक्चा और प्रबल हो जाती थी ,अच्छे सह्यात्रिवो की कारन पूरा मजा आने लगा था ,फिर हम मेडिकल के लिए गए जहां हमारे ग्रुप का सबसे छोटा अर्चित मडिकल टेस्ट मे फेल हो गया बाकि सब थोरे बहुत अर्चनो के बाद पास हो गए ,मडिकल टेस्ट दिन भर चला फिर डॉक्टर ने हम सबो को यात्रा के बारे मे और जरुरी बाते बताई ।
अगले दिन हम बिदेस मंत्रालय गए जहाँ हमें मंत्रलाय के अधिकारी और ITBP के कमांडेंट ने हमें संबोधित किया ,रास्ते के बारे मे बताया ,और अनावश्यक रूप से डराया भी ,चाइना के अंदर जैसे हम चोरी से जा रहे है ,विदेश मंत्रलाए मे ऐसी बाते सुन निरासा हूइ उनकी बातों मे जिमेदारी और उत्साह कही नहीं था ,जबकि पुरे यात्रा मे हमें लोगो का साथ मिला ,चीनी अधिकारियो का भी ब्योहार संतुलित था ,खैर हमने मंत्रलाए मे खूब फोटो खिचवाई और मजे किए ,फिर हमने रूपये को डॉलर मे बदलवाया फिर अगला दिन हम बस के द्वरा ITBP के कैंप गए जहा के अधिकारिवो ने हमें फिर ब्रीफ किया यहाँ हमें कई बाते सिखने को मिले जैसे- जो पूछा जाए वो अच्छा प्रसन्न जो न पूछा जाये वो बुरा प्रसन,डोन्ट बी ए गामा ए लैंड ऑफ लामा, बताया गया चलते समय साँस उखरने नहीं देना है ,खाना खा कर तुरंत सोए नहीं ,कलि नदी से बचे ,कालीनदी के साथ वाले रास्ते को हाइवे ऑफ डेथ कहा जाता है वहाँ विशेष सावधानी रखनी है ,जाते समय ITBP कैंप का तस्वीर नहीं लेना है ,ZIG ZAG चलना है ,चकोरी के बाद काफी ठण्ड होगी ,दोपहर के बाद स्नान करना है ,तीबत मे दलाई लामा का नाम नहीं लेना है , पहरों पर कभी भी अचानक मोसम खराब हो जाता है ,पुरे गरम कपडा ले कर जाना है ,ऊपर लगभग 19500FT तक की उचाई होगी तो साँस लेने मे दिक्कत होगा , थोड़ा -थोड़ा कर पानी पिए ,इसी तरह खाना भी ,पहले कुछ दिन नींद आने मे दिकत होगी गप्प न कर लेटे रहे ,गंतव्य पर पहुचने क्र बाद तुरंत कपडा न निकले धीरे धीरे निकाले,रिस्की जगहों पर घोरे पर न बैठे ,बीमारी तकलीफ छुपाएं नहीं ,कपडा जयादा से जयादा लेयर मे पहने ,अपने आप मे खुश रहना है ,बैठने के समय थोडा पैर ऊपर कर बैठना है ,पहरों पर से पत्थर गिरते है उए समय सिटी बजाना है पिने का पानी ले कर चलना है ,आदि आदि…ब्रीफिंग के बाद हमलोगों ने कैंप के कैंटीन से खरीददारी की फिर हम वापस गुजरात भवन आ गए जहाँ हम सबने अपना अपना पैकेट बनाया।
इस मामले मे गुजराती भाईओ को जयादा अनुभव था ,उनकी तैयारी जयादा मुकमल थी मगन भाई ने मेरा मदद किया मैंने भी अपना पैकिंग कर ली ,लेकिन दीपक इस मामले मे काफी कन्फुज थे उन्हों ने कई बार हँसीका माहोल खरा कर दिया ,इस समय तक सभी यात्री एक दूसरे को जान चुके थे कई एक दूसरे से काफी घुल मिल गए थे ,बालाजी काफी सक्रिय थे जल्द ही उन्हों ने टीम मे अपना उपयोगी स्थान बना लिया ,यहाँ दिलीप चोधरी को वित बिभाग दिया गया जो पेसे से भी चार्टड अकाउटेंट थे ,हमारे टीम मे ३ डॉक्टर थे डॉ कमलेश ,उनकी पत्नी ,और डॉ राजेन्द्र पटेल ,यहाँ मै प्रजापति जी का चर्चा करूँगा जो कमाल का व्यक्ति थी वे एक बार पैदल सूरत से हरीद्वार तक का यात्रा कर चुके थे ,प्रो उमापति पाण्डेय  को कैसे भुला जा सकता है जो ऊप्र से थे मोदी साहब, गर्ग साहब, रेड्डी साहब, जोगी बाबु, ये लोग हमारे टीम के बुजुर्ग मेम्बर थे,गर्ग जी जिनके कारन से पुरे यात्रा के दोरान भजन कीर्तन होता रहा कुल मिला बहुत ही अच्छा टीम मिला जो बिलकुल एक परिवार की तरह से हो गया था ,
7जुलाई को सुबह हामरे लिए दो वाल्वो बस गुजरात भवन के सामने लगी थी सुबह सुबह कुछ देहली के कुछ बारिस्ट लोग,और कुमाऊ बिकास मंडल की लोग जिनमे महिलाये भी सामिल थे ,हमें बिदा करने आये जबकि ५ बज रहे थे सुबह के, सब ने कतार मे लग कर तिलक लगा अबिवादन कराया कोसिक जी के भावभीनी बिदाई से हम सब अभिभूत थे ,फिर हमारा गाजियाबाद मे श्रधा पूर्वक अभिवादन किया गया ,कई जगहों पर हमारे स्वागत के तोरण लगे थे।
क्रमशः 


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